जब लगन चरम पर हो और ठाला भी चरम पर हो तो पुरे सीजन में एक बारात भी करने को मिल जाए तो नरक कट जाता है और ये मलाल भी नहीं रहता की, इस सीजन में एक बारात तक नहीं मिली |
कल बिल्कुल यही परिस्थिति थी | कल इस जानलेवा ठाले के दौरान एक बारात में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | 'सौभाग्य' ऐसा मैं तब तक सोच रहा था जब तक की बारात नहीं निकली | निम्न और मध्यम वर्गीय श्रेणी के बीच का परिवार था | पड़ोस के गाँव से बारात जानी थी, पर बारात कहाँ जानी थी ये कोई साफ़ साफ़ नहीं बता पा रहा था, लड़के का बाप तक नहीं |
कोई नन्दगंज बताता, कोई सदियाबाद, कोई इहवां कोई डीहवां | ख़ैर हमने लड़के(दूल्हे) से पूछा तो वह भी गाँव का नाम ही बता सका, कितनी दूर है उसे भी ठीक नहीं पता था |
और लगभग 6 बजे , रहरी जुट्टा से दाहिने परधनवा के रहर में घुसके बजड़ा काटकर बकइयाँ लेते हुए बारात निकल पड़ी | मैं और मेरे मेरे मित्र, हम दो लोग दो पहिया से निकले | डीजे मेरे मित्र का ही था तो हम डीजे गाड़ी के साथ चलते रहे | गाजीपुर RKBK डीज़ल पेट्रोल लेने के बाद सब अपनी रफ़्तार से निकल पड़े |
महाराजगंज पहुंचकर मैंने एक दोस्त से बात की
-- कहाँ आना है ?
-- बस बस नन्दगंज सीधे रपेट के आओ |
नन्दगंज पहुँचने के बाद
-- कहाँ हो बे ?
-- बस बस सैदपुर वाली रोड पे आओ |
हम चलते गए, चलते गए, कुछ दूर आगे जाकर ऐसा लगा की शायद हम आगे आ गए तब फिर फ़ोन किया,
-- कहा हो साले ?
-- बस बस तुम पहाड़पुर बाजार में दाहिने वाली रोड पर |
-- साले पहिले बताना चाहिए था, कितना आगे आ गए
-- कहा तक चले गए बे ?
-- तोर बहनीअउरा |
हम 10 किलोमीटर आगे निकल चुके थे, ख़ैर फिर हम वापस गये, बारात के साथ हुए |
किसी ने पूछा, 'अउर केतना भित्तर जाये के ह' |
-- ढेर ना हो 6 किलोमीटर |
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हिदायत दी गई की सब साथ रहेंगे, गाँव का नाम सवांस बताया गया, कोई भूल जाये तो पूछ के चला आएगा |
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आधा घंटा बीता, एक घंटा बीता, 2 घंटा, 3 घंटा पर अभी 6 किलोमीटर नहीं आया |
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10 बज गया था, बारात बिखर गई थी, दूल्हा कहाँ है पता नहीं, दूल्हे का बाप, दारु पी रहा होगा, इन्हीं सब अटकलों के बीच हर 200 मीटर पर हम 'सवांस' गाँव पूछते हुए आगे बढ़ रहे थे, हमारे पीछे डीजे गाड़ी |
मैंने दूल्हे जो फ़ोन लगाया,
-- कहाँ हो बे ?
-- लड़की के घर पर ?
-- भक् साले, फेरा लेने लगा क्या ?
-- नहीं यार, घर से डेढ़ किलोमीटर दूर
-- तुझे घर कैसे पता चला ?
-- मैं कई बार आया हूँ ?
हमें गाइड मिल चूका था, दूल्हे से पूछ पूछ कर कुछ आगे बड़े पर मेन रोड से 20 किलोमीटर अंदर नेटवर्क गायब होने लगा, कुछ ही समय बाद यूनिनॉर अपना सस्तापन दिखा चूका था और आईडिया में नेट के अलावा और कोई आईडिया लगाना सम्भव नहीं था |
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तभी एक दोस्त का फ़ोन आया जो बाराती के साथ औरों की तरह सवांस की वादियों में गुम हो चूका था |
-- कहा हउवे पंकज भाय ?
-- भटकत हई भाय, तू ?
-- हम त पहुँच गइनी
-- अरे साला, कइसे, कब, कहाँ ?
-- सवांस पूछ के आ जो
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विवश होकर फिर वही पूछा पूछी का खेल, एक बुज़ुर्ग से मैंने पूछा 'दादा सवांस किधर पड़ेगा ?
भइया सवांस त दू(2) गो ह, एगो ओह कोना बा एगो ओह कोना, कौन सवांस में जाये के बा ? -- बुज़ुर्ग ने अंगुली दिखाते हुए पूछा |
अरे दादा, ई त हमके ना पता, एगो बारात में जाये के बा -- मैंने कन्फ्यूज़ होकर बुज़ुर्ग से कहा |
लइकी के बाप क नाम का बा -- बुज़ुर्ग ने पूछा |
रामधारी राम -- मैंने बताया |
तब तू हाउ सवांस जा, नहर क किनारे किनारे चल जइहा -- बुज़ुर्ग से समझाया |
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कच्ची रोड को तेज़ी से पार करते हुए हम आखिरकार दूल्हे की गाड़ी तक पहुँच गए | पर बड़ा विचित्र लगा की वहां सिर्फ़ दूल्हे की ही गाड़ी दिख रही थी | 11 बजने को थे |
और सब कहा गए बे -- मैंने दूल्हे से पूछा |
मेरे बाद तुम ही पहुँचे हो, और सब पता नहीं कहाँ मरा रहे हैं -- चिंतित दूल्हे ने कहा |
अबे अजय तो बोल रहा था हम पहुँच गए -- मेरे मित्र ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा |
भक् साला, कोई नहीं आया है -- दूल्हा झल्लाया |
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अब कुछ कुछ नहीं पूरा का पूरा माजरा समझ में आ गया, उस बुज़ुर्ग ने कहा था दो सवांस है, और वो यक़ीनन दूसरे सवांस गाँव में चले गए थे, और दोनों के बीच की दुरी कुछ ख़ास नहीं बस 10 किलोमीटर थी पर जो ख़ास था वो ये था की पूरी 10 किलोमीटर की रोड पर हर एक फ़ीट पर एक एक फ़ीट का गड्ढा |
मैंने बोलना चालू किया, ' मेरे अंदाज़े से अगर पूरी बारात को यहाँ आने में लगभग घंटे भर लग जायेगा यानी बज जाएगा 12 , रोड लाइट सजाने में आधा घंटा यानी बज जाएगा 12:30, डीजे के साथ रहरी जुट्टा करते हैं तो घर तक पहुँचने में लगभग डेढ़ से 2 घंटे यानी बज जाएगा 2, पानी 3 बजे, खाना 3:30 पर |'
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सवांस के चक्कर से सबका होश हवास गुम था | मोटरसाइकिल में पेट्रोल ख़तम होने को था | सबकी ज़बान चटक रही थी, पीने के लिए पानी तक नहीं था | कोई थूक निगल के काम चला रहा था कोई कमला पसंद | मेरा अंदाज़ा टस से मस ना हुआ, डीजे के साथ 2 बजे बारात घर पहुँची |
बड़ी अजीब बात थी, लड़की की तरफ़ से ऐसा लग रहा, या तो कोई मेहमान नहीं है, या सब सो गए हैं |
कुछ सवाल दिमाग में घूम रहे थे,
घर तक की सड़क सिर्फ़ दूल्हे को ही पता था, बाप भी नहीं जनता था, लड़की वालों की तरफ़ से कोई फ़ोन नहीं की कहाँ तक बारात पहुँची |
निष्कर्ष यही आया की कहीं ना कहीं ये प्रेम विवाह है, जिसमें दोनों तरफ़ से माँ बाप की रत्ती भर हाँ नहीं है | कुछ देर बाद ये कन्फर्म भी हो गया |
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पानी को लेकर मेरा अंदाज़ा गड़बड़ हो रहा था, 3:30 हो गए पानी का पता नहीं |
कुछ देर बाद हो बाराती लौंडे ही मिठाई पानी वगैरह लेकर आये, घराती का कोई पता नहीं | इक्के दुक्के चूतिये की तरह भटकते दिख जाते थे | लड़की वालों को खूबसूरत गालियों से नवाजा जा रहा था | बाराती लौंडे थोड़ी फरहरी दिखाते हुए, खाना वग़ैरह भी खिलाना चालू किया | उधर दूल्हे का कार्यक्रम तेज़ी से निबटाया जा रहा था |
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इधर एक ने कहा -- किसी ने जयमाल देखा तो कृपया बताये दुलही कैसी थी ?
जयमाल जाये भांड में पहिले खाना हूर ले -- दूसरे ने उग्र होते हुए कहा |
फिर भी यार, आख़िर कौन सी हूर की परी थी जो शादी करने इस नरक तक चला आया, ना ढंग का घर ना बार, क्या दिखा साले को -- पहले ने कहा |
क्या दिखा ये तो पता नहीं पर लड़की सांवली थी कुछ ख़ास नहीं थी -- दूसरा बोला |
दोनों खाना खाते हुए कोसने में जुटे रहे |
लगभग साढ़े चार बज चूका था, अँधेरा छटने लगा था |
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मुझे इसका कोई मलाल नहीं था की व्यस्था कैसी थी , पर एक बात जो हमेशा चेहरे पर मुस्कान ला रही, वो था उन दोनों का सच्चा प्रेम |
मैं दूल्हे के पास जाकर दुल्हन से मिलने की इच्छा जाहिर की,
वो लड़की के पास ले गया, और उससे कहा, 'इनसे मिलो ये मेरा दोस्त है' |
लड़की ने एक मुस्कान के साथ बड़ी विनम्रता से नमस्ते कहा, मैंने भी नमस्ते से जवाब दिया |
दोनों के साथ एक फ़ोटो ली और उन दोनों को अलविदा कहा |
पर जाते जाते जो बात मैंने दूल्हे से कही वो आपके सबके दिल को छु जायेगी --- 'अच्छा ये बाताओ बे कोई साली है क्या ? अगर हो तो मोबाइल नंबर जुगाड़ कर देना बे, प्लीज़ |
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लेखक: ©नीरज विश्वजीत (एक_मुसाफ़िर)
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