दुनिया ख़त्म हो रही है। एक सेकण्ड में एक बार। हम सब आधे भूत बन चुके हैं। महंगे सेंट लगाए, ब्रांडेड घड़ी पहने, दो दो स्मार्टफोन जेबों में भरे हुए आधे भूत। हम दौड़ रहे हैं मेट्रो की सीट पर आराम करने को, क्योंकि शाम को हमें जिम की ट्रेड मिल पर दौड़ना है। हम एस्केलेटर पर भी चलते रहते हैं, हम वक़्त को पीछे छोड़कर परदे के उस पार झाँकना चाहते हैं। हमें जानना है कौन भर रहा है दुनिया की घड़ी में सेल। हम जल्दी में हैं, हमें जल्दी है पूरा भूत बनने की।
हमारी नसों की जगह डिजिटल वायर हैं। दिमाग की जगह पेंटियम आई 5, ज़हन 4 जीबी का है, आँखों में 21 मेगापिक्सल का बैक कैमरा है जिसमे अपनी सारी कमियां छुप जाती हैं। फ्रंट कैमरा वीजीए है, पर सब देख सकता है साफ़ साफ़। पर इसमें सेल्फी हमेशा न्यूड आती है। नंगा सच कितना नंगा होता है जैसे बनारस में नहाते अवघड़, गोवा की बिकिनी वाली औरतों जैसे नहीं वो तो एक्सप्रेसिव होती हैं।
खुद की कमाई हर हार को हम किस्मत का टाइपो एरर बोल देते हैं । अपनी हर गलती पर भगवान् का ऑटो करेक्ट चाहते हैं। हर अच्छी याद को माइक्रो एस डी में रखना चाहते हैं। हर हारे इश्क़ को कंट्रोल आल्ट डिलीट कर देना चाहते हैं। बहुत सारी गालियां है जिनमे ईमेल एड्रेस भी डाले थे जो मन के ड्राफ्ट में है बस बीच वाली ऊँगली सेंड बटन का मुंह देखती रह गईं।
ये वीकेंड पर पहाड़ की ट्रिप, ये शराब की लाल पीली ग्लासे, ये भोले की झूठी भक्ति के नाम पर गांजे की फूंके ये सब एनेस्थीज़िया है। दरअसल हम कोमा में जाना चाहते हैं। क्योंकि मरने की न हमारे पास हिम्मत है, न सहूलियत।
"शौख आदत बन चुके हैं आदते मजबूरी।"
सो सब के सब एक दुसरे के शौख को अपनी आदत बताते हुए भाग रहे हैं। "वी आर वन नौच अबव ब्रो, वी एंट दी लॉट।
"एक भाग रहा है क्योंकि सब भाग रहे हैं, सब भाग रहे हैं ये देखने कि एक क्यों भाग रहा हैं।"
किसी के पास सपनों का बोझ है, किसी के पास जिम्मेदारियों की आज़ादी। कुछ चंद विज्ञापन के लोग हमारे हाथ में रिमोट देकर हमें चुनने की आज़ादी दे रहे हैं।
*गोरे हो जाओ तो छा जाओगे, पतले हो जाओगे तो ज़माना तुम्हे वल्ला हबीबी कहेगा, ये वाला डियो लेलो इससे लड़कियां छपरा तोड़कर तुम्हारी गोदी में गिरेंगी, विदेश घूम आओ बौरा जाओगे, बस लेलो जो हम कह रहे हैं, लेते क्यों नहीं बेवक़ूफ़। चैनेल मत बदलना। क्योंकि ये जानना बहुत ज़रूरी है कि क्या सिमरन के मन में उसके जीजा के प्यार का फूल खिल चूका है? नहीं सोचते इस बारे में? स्वार्थी कहीं के, बस अपने बारे में सोचते रहते हो।
ये आधे भूत जत्थों में चलते हैं सड़कों पर सर झुकाये अपनी अपनी स्क्रीन्स में ऐसा रस्ता ढूंढने को जिसमे ये खो सकें और कभी वापस न आएं। किसी दिन मैं इन सब का नैविगेशन हैक करके इन सबको भेज दूंगा किसी गहरी खाई में और रास्ता बताने वाली उस औरत की जीभ काट दूंगा फिर और सब चले जायेंगे कोमा में। डर है मगर इनमे से कोई ज़ॉम्बी अभी भी गूगल मैप्स की जगह किसी ऑटो वाले से रास्ता न पूछ ले। क्योंकि हम अभी भी बस आधे भूत हैं।
डिजिटाइज़ेशन-0.5, ह्यूमैनिटी1
Writer : Avinash singh Tomar
Comments
Post a Comment