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जरुर पढ़े : कैसे दूर करे अपना आलस्य ? (HOW TO OVERCOME LAZINESS IN HINDI)

 हममें से कई दोस्तों ने कभी ना कभी ये कोशिश ज़रूर की होगी कि अपना आलस दूर करके रोज़ सुबह जल्दी कैसे उठा जाये या फिर कोई भी कार्य को अभी न करके अगले दिन पर डाला जाये ! अब सवाल ये उठता है की इस आलस को दूर कैसे किया जाये ? हो सकता है कि आपमें से कुछ लोग इस आलस को दूर करने में कामयाब भी हुए हों, पर अगर majority की बात की जाये तो वो आलस को दूर करने में कामयाब नही हो पाते. लेकिन आज जो article  मैं आपसे share कर रहा हूँ इसे पढने के बाद आपकी आलस्य पर सफलता की संभावना निश्चित रूप से बढ़ जाएगी.  यह article इस विषय पर दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़े गए लेखों में से एक का Hindi Translation है. इसे Mr. zig ziglar ने लिखा है . इसका  title है “There is no such thing as a lazy person“.

तो आइये जानें कि: कैसे दूर करे अपना आलस्य ?

दोस्तों मेरा यह कहना आपको कुछ आश्चर्यजनक लगेगा की आलसी व्यक्ति जैसी कोई चीज नही होती : वह या तो बीमार होता है या अप्रेरित होता है |  अगर कोई व्यक्ति बीमार है तो उसे अपने डॉक्टर के पास जाना चाहिए | अगर वह अप्रेरित है तो बहुत सी चीजे है जो उसे करनी चाहिए | उसे प्रेरक वक्ताओ को सुनना चाहिए या motivational articles पढने चाहिए या फिर प्रेरक लोगो का संग करना चाहिए | पूर्व ओलम्पिक चैंपियन और अमेरिका के महान वक्ताओ में गिने जाने वाले Bob Richards संगती (Accompaniment) से प्रेरणा पाने का एक सशक्त उदाहरण है | उनका कहना है की ओलम्पिक में खिलाडी बार-बार रिकॉर्ड तोड़ने के प्रदर्शन देते है क्युकी वे सब स्वयं को एक महानता के वातारण(The greatness of the environment) में पाते है |

जब कोई नौजवान पुरुष या महिला विश्व भर के दुसरे खिलाडियों को उनके पहले सर्वश्रेष्ट प्रदर्शनों से बार-बार अपना best करते हुए देखता है तो हर कोई 'अपने सर्वश्रेष्ट से आगे बढ़कर' प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित हो जाता है | मानवजाति अपने Best efforts से कुछ Result प्राप्त करने में सक्षम है और रिचर्ड्स बताते है की champions का साथ champion वाला प्रदर्शन करने के लिए inspire करता है |

source- Google Image                                        

बहुत अधिक सरलीकरण का जोखिम उठाते हुए, मेरा मानना है की बहुत से "आलसी" लोगो को छवि व दृष्टिकोण की समस्या होती है | वे अपने काम या व्यवसाय में अपना पूर्ण प्रयास करने में हिचकिचाते है | यह सोचकर की अगर उन्होंने पूरा प्रयास किया और काम नही बन पाया तो वे असफल कहे जायेंगे | वे इसे तर्कसंगत(Rational) बना लेते है | की अगर वे आधे मन से प्रयास करे और काम नही बना तो उनके पास एक बना-बनाया बहाना होगा | वे अपने दिमाग में खुद को असफल महसूस नही करते क्युकी उन्होंने बास्तव में कोशिश ही नही की | वे अक्सर कंधे उचकाते हुए कहते है, "इससे मुझ पर कोई फर्क नही पड़ता" | 

बहुत से कर्मचारियों के साथ यही बात लागु होती है 
बहुत बार काम के प्रति अनिच्छा(reluctance) 
दूसरी और गहरी समस्याओ से जुडी होती है |

इस बात को ध्यान में रखकर मेरा आपसे आग्रह है 
की आप खुद पर एक और नजर डाले | 
और देखे की आप बीमार है या अप्रेरित | 
अगर दोनों में कुछ भी है तो दोनों का इलाज संभव है | 

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